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सोजे-ए-वतन--मुंशी प्रेमचंद


शेख मखमूर--मुंशी प्रेमचंद

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जब यह जीत की लहर-जैसी फौज शहर की दीवार के अन्दर दाखिल हुई तो शहर के मर्द और औरत, जो बड़ी मुद्दत से गुलामी की सख्तियाँ झेल रहे थे, उसकी अगवानी के लिए निकल पड़े। सारा शहर उमड़ आया। लोग सिपाहियों को गले लगाते थे और उन पर फूलों की बरखा करते थे कि जैसे बुलबुलें थीं जो बहेलिये के पंजे से रिहाई पाने पर बाग में फूलों को चूम रही थीं। लोग शेख मखमूर के पैरों की धूल माथे से लगाते थे और सरदार नमकखोर के पैरों पर खुशी के ऑंसू बहाते थे।
अब मौका था कि मसऊद अपना जोगिया भेस उतार फेंके और ताजोतख्त का दावा पेश करे। मगर जब उसने देखा कि मलिका शेर अफगन का नाम हर आदमी की जबान पर है तो खामोश हो रहा। वह खूब जानता था कि अगर मैं अपने दावे को साबित कर दूँ तो मलिका का दावा खत्म हो जायेगा। मगर तब भी यह नामुमकीन था कि सख्त मारकाट के बिना यह फैसला हो सके। एक पुरजोश और आरजूमन्द दिल के लिए इस हद जब्त करना मामूली बात न थी। जब से उसने होश संभाला, यह ख्याल कि मैं इस मुल्क का बादशाह हूँ, उसके रगरेशे में घुल गया था। शाह बामुराद की वसीयत उसे एक दम को भी न भूलती थी। दिन को यह बादशाहत के मनसूबे बाँधता और रात को बादशाहत के सपने देखता। यह यकीन कि मैं बादशाह हूँ उसे बादशाह बनाये हुए था। अफसोस, आज वह मंसूबे टूट गये और वह सपना तितर बितर हो गया। मगर मसऊद के चरित्र में मर्दाना जब्त अपनी हद पर पहुँच गया था। उसने उफ तक न की, एक ठंडी आह भी न भरी, बल्कि पहला आदमी, जिसने मलिका के हाथों को चूमा और उसको सामने सर झुकाया, वह फकीर मखमूर था। हाँ, ठीक उस वक्त जब जोकि वह मलिका के हाथ को चूम रहा था, उसकी जिन्दगी भर की लालसाएं आँसू की एक बूँद बनकर मलिका की मेंहदी-रची हथेली पर गिर पड़ी कि जैसे मसऊद ने अपनी लालसा का मोती मलिका को सौंप दिया। मलिका ने हाथ खींच लिया और फकीर मखमूर के चेहरे पर मुहब्बत से भरी हुई निगाह डाली। जब सल्तनत के सब दरबारी भेंट दे चुके, तोपों की सलामियाँ दगने लगीं, शहर में धूमधाम का बाजार गर्म हो गया और खुशियों के जलसे चारों तरफ नजर आने लगे।
राजगद्दी के तीसरे दिन मसऊद खुदा की इबादत में बैठा हुआ था कि मलिका शेर अफगन अकेले उसके पास आयी और बोली, मसऊद, मैं एक नाचीज तोहफा तुम्हारे लिए लायी हूँ और वह मेरा दिल है। क्या तुम उसे मेरे हाथ से कबूल करोगे? मसऊद अचम्भे से ताकता रह गया, मगर जब मलिका की आँखें मुहब्बत के नशे में डूबी हुई पायी तो चाव के मारे उठा और उसे सीने से लगाकर बोला—मैं तो मुद्दत से तुम्हारी बर्छी की नोक का घायल हूँ, मेरी किस्मत है कि आज तुम मरहम रखने आयी हो।

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